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जैन धर्मानुसार सुबह उठने की विधि

Prashant Chourdia by Prashant Chourdia
March 2, 2016
in जैन जानकारी
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जैन धर्म के अनुसार सुबह सूर्य उगने में चार घडी (96 मिनट) शेष हो तब जाग जाना चाहिये। इसे ब्रह्रामुहुत कहा जाता है “श्रावक तू उठे प्रभात, चार घडी रहे पाछली रात”।

अंग्रेजी कहावत
“Early to bed and early to rise, it is the
way to be healthy, wealthy and wise.”

आज के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है की जो मनुष्य सूर्योदय के बाद उठता है, उसकी मस्तिष्क शक्ति कमजोर बनती है। ज्यादा नींद लेना, शरीर और मन के निये हानिकारक है, एसा केलिफोर्निया के रिसर्च डॉक्टर ने सिध्द किया है। बालकों के लिये 8 घंटे, युवको के लिये 6 घंटे और वृध्दों के लिए 4 घंटे नींद काफी है। परम और श्रेष्ठ वैज्ञानिक भगवान महावीर ने जो आज से 2560 वर्ष पूर्व ही यह बात कह दी थी की युवा साधुओं को 2 प्रहर (6 घंटे करीब) से ज्यादा नींद नहीं लेनी चाहिये।

जैन धर्म के अनुसार शयनविधि – दिशा बदलो दशा बदलेगी

इसलिये 10 बजे सोने के बाद 4 बजे उठाना हो सकता है (नाईटक्लबो में जाना, आधी रात को प्रोनोग्रफिक फिल्मे देखना, 12 बजे सोना, सुबह 10 बजे उठना सज्जन व्यक्ति के लिए शोभास्पद नहीं है।) कहावत भी है “आहार और निंद्रा ज्यों बढाओ त्यों बढती है और घटाओ त्यों घटती है।”

सुबह उठकर अंजलीबध्द प्रणाम में हाथ जोड़कर 8 नवकार गिनें।

विवेक: यदि बिस्तर पर बैठकर गिन रहे है तो मौन पूर्वक गिनें। उच्चारण पूर्वक गिनना है तो निचे बैठकर गिनें। उठते वक्त आठ नवकार 8 कर्मो को दूर करने के लियें है। आठ कर्म के नाम ज्ञानावरण – दर्शनावरण – वेदनीय – मोहनीय – आयुष्य – नाम – गोत्र – अन्तराय है।

उदाहरण: ज्ञानचंद शेठ दर्शन करने गये। पेट में वेदना हुई। मोहनलाल वैध मिले। पूछा दर्शन में अन्तराय केसे पड़ा? नाम क्या? गोत्र क्या? दवाई देकर कहा यह पुडिया ले लेना तेरा आयुष्य बहुत लंबा हो जायेगा।

अंजलि बध्द प्रणाम करने की विधि

दायें हाथ की उंगलियाँ ऊपर आये इस प्रकार हाथ में उंगलियाँ एक दुसरे में फंसानी व 8 नवकार गिनना। तत्पश्चात दोनों हथेली इक्कठी कर सिद्ध शिला पर विराजमान 24 तीर्थंकर भगवान एवं अनंतासिध्दो के भाव से दर्शन करें और उन्हें भाव से वंदन करें (हितशिक्षा रास) “जिस सिधात्मा की कृपा से मेरी आत्मा निगोद में से बाहर आई, सातवीं नरक से भी अनंतगुणीवेदना से मेरा छुटकारा हुआ. उस परमोपकारी सिद्ध भगवंत को मेरी कोटि – कोटि वंदना हो”

प्रात: काल का चिंतन : आचारिंगादी आगमसुत्रों के अनुसार प्रतिदिन प्रात: ऐसा सोचना चाहिये “कुओ हं आगाओ? पुव्वाओ?….” मै कहाँ से आया हूँ? किस दिशा से आया हूँ? मेरा क्या कर्तव्य है? मैं कहाँ जाऊंगा? मुझे केसा दुर्लभ और उत्तम जिनशासन मिला है? मेरे देव-गुरु और धर्म कितने महान हैं! यह मानवजन्म मुनि बनकर मोक्ष में जाने के लिए ही है। संयम न मिले तब तक मुझे अपना जीवन कैसा बनाने का है? प्रतिज्ञा बिना का जीवन पशुतुल्य है। नियम तो लगाम है, अंकुश है। वह हाथी – घोड़े पर लगता है, गधे पर नहीं। मैंने कौन – कौन सी प्रतिज्ञाए ली है? मुझे मोक्षमार्ग किस उपकारी गुरुदेव ने बताया? किसने उस मार्ग में मुझे स्थित किया? मेरा धर्ममित्र कौन है? भुलक्कड़ गोपीचन्द की तरह मै मेरे उपकारी उत्तम देव गुरु को भुला तो नहीं हूँ न? आदि।

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